बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययन बीए सेमेस्टर-2 रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययनसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययन - सरल प्रश्नोत्तर
तुर्क एवं राजपूत सैन्य पद्धति :
तराइन का युद्ध (1192 ईस्वी)
[Turk and Rajput Military System :
Battle of Tarrian (1192 AD)]
प्रश्न- राजपूत सैन्य पद्धति और युद्धकला पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
अथवा
राजपूत सैन्य पद्धति की असफलता हेतु उत्तरदायी तत्वों की विवेचना कीजिए।
अथवा
राजपूत सैन्य पद्धतियों की प्रमुख विशेषताओं की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
अथवा
12वीं शताब्दी में राजपूतों की पराजय के महत्वपूर्ण कारण क्या थे?
अथवा
तराइन के विशेष संदर्भ में राजपूत युद्ध कला की व्याख्या कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. राजपूत सैन्य पद्धति की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए
2. राजपूतों के सैन्य संगठन पर प्रकाश डालिए।
3. राजपूतों के गुण एवं दोष लिखिए।
उत्तर -
राजपूत सैन्य पद्धति तथा युद्ध नीति
राजपूतों ने सम्राट हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद हिन्दू सैन्य प्रणाली को अपने हाथों में ले लिया था। राजपूतों की बहादुरी के किस्से अक्सर किताबों में मिलते हैं। राजपूत बड़े साहसी, वीर, पराक्रमी तथा देशभक्त होते थे। भारत में काफी समय तक राजपूतों का शासन रहा परन्तु तुर्कों से हुए तराइन के युद्ध ने उनके शासन को सीमित कर दिया तथा राजपूत सिर्फ राजस्थान तक ही सीमित रह गये।
1. राजपूतों का सैन्य संगठन - राजपूतों का सैन्य संगठन राजा के हाथ में न होकर सामन्त तथा जागीरदारों पर निर्भर था। राजपूत राजाओं के पास स्थायी सेना का अभाव था। युद्ध के समय राजा को सेना एकत्र करनी पड़ती थी। राजपूत सेना के तीन प्रमुख भाग थे - पैदल सेना, हाथी सेना तथा अश्वारोही सेना।
इन तीनों सेनाओं में अश्वारोही सेना अत्यन्त महत्वपूर्ण थी। एक तरह से देखा जाये तो अश्वारोही सेना राजपूत सेना की रीढ़ थी। राजपूत इस गतिशील सेना पर पूर्ण भरोसा करते थे। अश्वारोही सैनिकों के पास प्रायः हल्के हथियार रहते थे जिनमें तलवार, भाले और कृपाण आदि प्रमुख थे। इन सेना में कुछ कवच धारण किये धनुर्धारी भी रहते थे। प्रत्येक अश्वारोही को अपनी अश्व की देख-भाल स्वयं करनी पड़ती थी। राज्य की तरफ से इसकी देखभाल का कोई प्रबन्ध नहीं था। केवल हस्ति सेना की व्यवस्था राजा की 'ओर से होती थी।
संपूर्ण सेना को कई छोटे-छोटे दलों में विभाजित किया जाता था जिनका नेतृत्व राज्य की ओर से नियुक्त किये गये कर्मचारी तथा पदाधिकारी करते थे। सामतों की सेनायें उन्हीं के नेतृत्व में युद्ध करती थी।
2. राजपूतों के अस्त्र-शस्त्र - राजपूत युद्ध के समय लड़ने में कोई खास हथियार का प्रयोग नहीं करते थे। उनके हथियार सामान्य तौर पर तलवार, भाले होते थे। दूर से लड़ने के लिए वे धनुष-बाण तथा बल्लभ आदि का प्रयोग करते थे। आत्म-रक्षा के लिए वे लोहे की चादर का बना कवच छाती पर तथा सर पर लोहे का टोप पहनते थे। ढाल का प्रयोग भाले तथा तलवार के वार से बचने में किया जाता था।
3. दुर्ग निर्माण - राजपूतों के द्वारा बनवाये गये दुर्ग अत्यन्त मजबूत तथा सुरक्षात्मक स्थिति में -बने होते थे। इन दुगों में हथियार धन तथा रसद आदि रखी जाती थी। राजपूत इन दुर्गों में छिपकर शत्रु से आसानी से लड़ते थे क्योंकि दुर्गों से उन्हें प्रतिरक्षात्मक स्थिति मिल जाती थी तथा शत्रु के लिए यह दुर्ग तोड़ना अत्यन्त मुश्किल कार्य होता था।
तराइन के द्वितीय संग्राम में राजपूतों की युद्धकला - तराइन के प्रथम युद्ध की पराजय का बदला लेने का दृढ़निश्चय करके मोहम्मद गोरी ने पुनः 120,000 कवचधारी अश्वारोही सेना के साथ भारत पर आक्रमण कर दिया। राजपूत सैनिक तुर्कों के अचानक आक्रमण का सामना कुशलता से नहीं कर सके राजपूतों को तैयारी का समय नहीं मिला। इस युद्ध में राजपूत सैनिक इधर-उधर बिखरे हुए थे तथा लड़ाई में कोई विशेष युद्धकला तथा शस्त्रों का प्रयोग नहीं कर सके। राजपूतों ने इस युद्ध में तुर्कों के समीप जाने के भरसक प्रयास किये किन्तु तुर्क सैनिक उनके करीब आते ही पीछे हट जाते थे। राजपूत सैनिकों ने तुर्कों पर धनुष बाण तथा बल्लम, भाले आदि से प्रहार किये। राजपूतों की हस्ति सेना को तुर्कों ने अपने भीषण प्रहार से अस्त-व्यस्त कर दिया।
4. राजपूतों की पराजय तथा मुसलमानों की विजय के कारण - सम्राट हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात् हिन्दू साम्राज्य तथा सैन्य प्रणाली राजपूतों के हाथ में आ गई थी, परन्तु राजपूतों में आपस में मेल नहीं था तथा वे आपस में बैर रखते थे। जातीय भेद भावना के कारण भी हिन्दू साम्राज्य में मेल नहीं था। - आपसी फूट के कारण तथा दोषपूर्ण रणनीति के कारण वे मुसलमानों का सामना नहीं कर सके और भारत में मुसलमानों का साम्राज्य स्थापित करवा दिया। विस्तारपूर्वक देखा जाये तो राजपूतों की असफलता के अनेक कारण थे परन्तु निम्नलिखित मुख्य कारण राजपूतों की असफलता के कारण बने -
(i) आपसी वैमनस्य एवं फूट - राजपूतों में आपस में ईर्ष्या एवं द्वेष कलह फैली हुई थी जिस कारण वे आपस में मिल कर नहीं रहते थे। वे एक-दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश किया करते थे। गोरी के आक्रमण के समय भी उनमें आपस में मेल नहीं था जिस कारण पृथ्वीराज सेनाएँ संगठित नहीं कर सका और थोड़ी सी सेना के बल पर गोरी से युद्ध करना पड़ा। जोकि राजपूतों की पराजय का मुख्य कारण था।
(ii) नवीनतम शस्त्रों की कमी - राजपूत सदैव अपने को शक्तिशाली मानते थे तथा उन्होंने कभी विदेशी आक्रमण का सामना नहीं किया जिस कारण उन्हें नवीनतम शस्त्रों का ज्ञान नहीं था तथा वे वही पुराने शस्त्रों के द्वारा ही युद्ध क्षेत्र में उतर आये थे। दूसरी तरफ गोरी की सेना के पास नवीनतम हथियार थे। इसीलिए उन्होंने राजपूतों को आसानी से पराजित कर दिया।
(iii) गतिशीलता का अभाव - मुस्लिम योद्धाओं के पास अच्छी नस्ल के ऊंचे घोड़े थे जबकि भारतीय हिन्दू सेना के पास अधिक अच्छे घोडे नहीं होते थे। राजपूतों के घोड़े मुस्लिम सेनाओं के घोड़ों की तुलना में जल्दी थक जाते थे तथा उनकी गति भी अधिक नहीं थी। इसी कारण मुस्लिम अक्रान्ता अधिक तेजी से आकर भारतीय सेना को चकमा तथा घातक समरतंत्र (Shock Tactics) का प्रयोग करके राजपूतों पर विजय प्राप्त कर ली।
(iv) मुहम्मद गोरी द्वारा कूटनीतिक दांव चलाना - मुहम्मद गोरी ने इस युद्ध में कूटनीतिक चालों का प्रयोग किया जिसे भारतीय सैनिक समझ नहीं पाये और पराजित हुए। भारतीय सेना के सेनापतियों में कूटनीतिक चालों की कमी थी। इसी कारण पृथ्वीराज भी तुकों की इस चाल को समझ नहीं पाये और उन पर विश्वास कर लिया जिसका बदला उन्हें अपनी हार से चुकाना पड़ा।
(v) प्रतिरक्षा के प्रति ध्यान न देना - राजपूत अपनी वीरता एवं शौर्य के मद में इतने मस्त थे कि उन्होंने अपनी प्रतिरक्षा की योजना बनाने का प्रयास कभी नहीं किया और उन्होंने अपने पार्श्वों को सुरक्षित रखने के महत्व की भी उपेक्षा की जिसके कारण तुर्की आक्रमणकारी दाहिनी बाई और पीछे की ओर से राजपूत सेना पर आक्रमण कर उसे विस्मित कर लेते थे।
(vi) राष्ट्रीयता तथा देशभक्ति की कमी - राजपूतों की सेना अस्थायी थी राजपूतों का सैन्य संगठन अनेक छोटे-छोटे भागों में विभक्त था तथा यह टुकड़ियाँ सामंतों तथा जागीरदारों की होती थी जिस कारण राजपूत सैनिक केवल अपनी-अपनी वीरता दिखाने के लिए युद्ध करते थे। इसलिए उनमें
देशभक्ति की भावना नहीं थी।
(vii) राजपूत सेना में नेतृत्व की कमी - राजपूत राजा व जागीरदार सेनानायक भी होते थे. योग्यता के आधार पर न होकर यह पैतृक होते थे जिसके कारण उनमें सफल नायक के गुण नहीं थे, जबकि तुर्की और कामाण्डर श्रेष्ठ नेता थे और उन्हें युद्धों का बहुत अनुभव था।
(viii) गुप्तचर व्यवस्था का अभाव - गुप्तचर व्यवस्था के अभाव में तथा आपस की लड़ाइयों में संलग्न रहने के कारण, राजपूतों को विदेशी आक्रमण का आभास तब होता था जब वह उनके सिर पर आ जाता था। दूसरी ओर शत्रु को उनकी योजनाओं, सैन्य संचालन की बातों का पूरा विवरण सरलता से मिल जाता था।
अन्य कारण - यह निम्न प्रकार है -
1. के० एम० पणिक्कर के शब्दों में- "भारतवर्ष में बारहवीं शताब्दी में हिन्दुओं की पराजय का सबसे महत्वपूर्ण कारण हिन्दुओं द्वारा प्रतिरक्षा के उचित सिद्धान्तों का निर्माण न करना था। इसी कारण भारत पर मुसलमानों का अधिकार हुआ। मुसलमानों के पतन तथा अंग्रेजों के भारत पर अधिकार का भी यही कारण है।
2. तुर्की नायक अपनी सेना के पीछे अपनी सेना की संपूर्ण गतिविधियों पर नियंत्रण रख सकते थे। जबकि भारतीय नायक अपनी सेना के आगे रहकर सेना का संचालन व नियंत्रण कुशलतापूर्वक नहीं कर पाये थे।
3. भारतीय नरेशों व सैनिकों में शराब पीने की बड़ी बुरी लत थी जिसके कारण वे दूरदर्शी योजनायें नहीं बना पाते थे।
4. राजपूतों की सेना में भर्ती मुस्लिम सैनिकों की धार्मिक भावनाओं को भड़काकर विदेशी अपनी ओर मिला लेने का प्रयास करते थे जिसमें बहुधा वे सफल भी हुए। इस प्रकार संकट के समय अनायास रक्षक सेना शत्रु का रूप धारण कर घोर संकट उत्पन्न कर देती थी।
5. राजपूत, अन्धविश्वासी थे। उन्होंने यह पहले से ही स्वीकार कर लिया था कि भारत में युवनों का राज्य होगा। इस कारण भारतीयों ने सेना में भर्ती होकर वीरता का प्रदर्शन करना छोड़ दिया।
6. तुकों की विजय कुछ आकस्मिक कारणों से भी हुई, जैसे चन्देल का भाग जाना, जयचंद की आंख में तीर लगना, हाथी का पागल हो जाना। इन आकस्मिक कारणों ने भारतीयों की विजय को तुर्कों के पक्ष में कर दिया।
7. राजपूत यह भूल गये थे कि गोरी प्रथम तराइन के युद्ध में हुई हार का बदला लेने दोबारा आ सकता है। इधर गोरी ने एक साल के अन्तराल में अपनी सेना को पुनः अधिक शक्तिशाली बना कर संगठित कर अचानक हमला बोल दिया था।
राजपूतों के गुण - यह निम्न प्रकार है -
1. राजपूत बड़े ही दयालू तथा स्वाभिमानी होते थे।
2. राजपूत साहसी, वीर, पराक्रमी, बहादुर, स्वामीभक्त होते थे।
3. राजपूत युद्ध को धार्मिक नीति से लड़ते थे तथा छल-कपट और विश्वासघात को कभी नहीं
4. राजपूत शत्रु कैदी के प्रति उदार थे।
5. निर्धन, भोले व्यक्तियों, असहायों पर उन्होंने कभी अत्याचार नहीं किये।
6. राजपूतों ने भारतीय इतिहास को गौरवपूर्ण बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
7. अतिथिसत्कार तथा शरणागत की रक्षा करना वे अपना परम धर्म मानते थे।
8. युद्ध में लड़ते हुए मर जाना वे अपना स्वाभाव समझते थे।
राजपूतों के दोष -
1. राजपूतों में जातीय तथा वंश की भावना अत्यधिक थी।
2. राजपूतों में दूरदर्शिता का अभाव था।
3. राजपूतों में सैनिक मनोवृत्ति का भी अभाव था।
4. राजपूतों में आपसी मेल नहीं था।
5. राजपूतों ने खुद को अधिक शक्तिशाली समझा तथा विदेशी ताकतों के बारे में अनभिज्ञ रहे।
6. राजपूतों ने शक्तिशाली केन्द्रीय सेना की स्थापना नहीं की।
7. शराब पीना, जुआ खेलना, अफीम गांजा का सेवन करना उनका शौक था।
निष्कर्ष - तुर्कों की सफलता का मुख्य कारण राजपूतों की अगठित शक्ति तथा आपसी वैमनस्य था। राजपूत सरदारों का क्षेत्र सिमट कर राजस्थान तक ही सीमित रह गया।
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- प्रश्न- वैदिककालीन सैन्य पद्धति एवं युद्धकला का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- महाकाव्य एवं पुराणकालीन सैन्य पद्धति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारत में गुप्तचर व्यवस्था पर प्रकाश डालते हुए गुप्तचरों के प्रकार तथा कर्मों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- राजदूतों के कर्त्तव्यों का विशेष उल्लेख करते हुए प्राचीन भारत की युद्ध कूटनीति पर एक निबन्ध लिखिये।
- प्रश्न- समय और कालानुकूल कुरुक्षेत्र के युद्ध की अपेक्षा रामायण का युद्ध तुलनात्मक रूप से सीमित व स्थानीय था। कुरुक्षेत्र के युद्ध को तुलनात्मक रूप में सम्पूर्ण और 'असीमित' रूप देने में राजनैतिक तथा सैन्य धारणाओं ने क्या सहयोग दिया? समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- वैदिक कालीन "दस राजाओं के युद्ध" का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- वैदिकयुगीन दुर्गों के वर्गीकरण का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वैदिककालीन सैन्य संगठन पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- सैन्य पद्धति का क्या अर्थ है?
- प्रश्न- भारतीय सैन्य पद्धति के अध्ययन के स्रोत कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- महाकाव्यों के काल में युद्धों के वास्तविक कारण क्या होते थे?
- प्रश्न- पौराणिक काल के अष्टांग बलों के नाम लिखिये।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास में कितने प्रकार के राजदूतों का उल्लेख है? मात्र नाम लिखिये।
- प्रश्न- धनुर्वेद के अनुसार आयुधों के वर्गीकरण पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- महाकाव्यों के काल में युद्ध के कौन-कौन से नियम होते थे?
- प्रश्न- महाकाव्यकालीन युद्ध के प्रकार एवं नियमों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वैदिक काल के रण वाद्य यन्त्रों के बारे में लिखिये।
- प्रश्न- वैदिककालीन दस राजाओं के युद्ध का क्या परिणाम हुआ?
- प्रश्न- पौराणिक काल में युद्धों के क्या कारण थे?
- प्रश्न- वैदिक काल की रथ सेना का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन काल में अश्व सेना के कार्यों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारत में राजूदतों के कार्यों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय सेना के युद्ध के नियमों को बताइये।
- प्रश्न- किन्हीं तीन प्रकार के प्राचीन हथियार एवं दो प्रकार के कवचों के नाम लिखिए।
- प्रश्न- धर्म युद्ध से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- किलों पर विजय प्राप्त करने की विधियों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- झेलम के संग्राम (326 ई.पू.) में पोरस की पराजय के कारणों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- झेलम के संग्राम से क्या सैन्य शिक्षाएं प्राप्त हुई?
- प्रश्न- झेलम के संग्राम के समय भारत की यौद्धिक स्थिति का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सिकन्दर की आक्रमण की योजना की समीक्षा करो।
- प्रश्न- पोरस तथा सिकन्दर की सैन्य शक्ति की तुलनात्मक विवरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- सिकन्दर तथा पुरू की सेना का युद्ध किस रूप में प्रारम्भ हुआ?
- प्रश्न- सिकन्दर तथा पोरस की सेना को कितनी क्षति उठानी पड़ी?
- प्रश्न- कौटिल्य के अर्थशास्त्र में वर्णित सैन्य पद्धति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कौटिल्य के अनुसार मौर्यकालीन युद्ध कला एवं सैन्य संगठन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- कौटिल्य कौन था? उसकी पुस्तक का नाम लिखिए।
- प्रश्न- कौटिल्य द्वारा वर्णित सैन्य बलों की श्रेणियां लिखिये।
- प्रश्न- कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में कितने प्रकार के राजदूतों का वर्णन किया है
- प्रश्न- कौटिल्य के सैन्य संगठन सम्बन्धी विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- कौटिल्य के व्यूहरचना (Tactical Formatic) सम्बन्धी विचारों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- कौटिल्य के द्वारा बताये गये दुगों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- कौटिल्य ने युद्ध संचालन के लिए कौन-कौन से विभागों का वर्णन किया है?
- प्रश्न- कौटिल्य द्वारा बताये गये गुप्तचरों के रूप लिखिए।
- प्रश्न- राजपूत सैन्य पद्धति और युद्धकला पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- तराइन के द्वितीय संग्राम (1192 ई०) का वर्णन कीजिए। हमें इस युद्ध से क्या शिक्षाएँ मिलती हैं?
- प्रश्न- तराइन के दूसरे युद्ध ( 1192 ई०) में राजपूतों की पराजय तथा मुसलमानों की विजय के क्या कारण थे?
- प्रश्न- तराइन के युद्ध की सैन्य शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- राजपूतों के गुणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- "राजपूतों में दुर्गुणों का भी अभाव न था।" इस कथन को साबित कीजिए।
- प्रश्न- दिल्ली सल्तनत के सैन्य संगठन और युद्ध कला पर प्रकाश डालिए। बलबन तथा अलाउद्दीन के सैन्य सुधारों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- दिल्ली सल्तनत के पतन के कारणों की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- मुगल काल में अश्वारोही सैनिक कितने प्रकार के होते थे?
- प्रश्न- तोप और अश्वारोही सेना मुगलकालीन सेना के मुख्य सेनांग थे जिनके ऊपर उन्हें विजय प्राप्त करने का विश्वास था। विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- आघात समरतंत्र (Shock Tactics) क्या है?
- प्रश्न- दिल्ली सल्तनत की सैन्य व्यवस्था तथा विस्तार पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- मुगल स्त्रातजी तथा सामरिकी का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 1526 ई० में पानीपत के प्रथम संग्राम का सचित्र वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मुगलों की सेना में कितने प्रकार के सैनिक थे?
- प्रश्न- मुगल सैन्य पद्धति के पतन के क्या कारण थे?
- प्रश्न- सेना के वह मुख्य भाग क्या थे? जिन पर मुगलों की विजय आधारित थी? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मुगल तोपखाने पर संक्षेप में लिखिये।
- प्रश्न- युद्ध क्षेत्र में मुगल सेना की रचना का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मुगल काल में अश्वारोही सैनिक कितने प्रकार के होते थे?
- प्रश्न- तोप और अश्वारोही सेना मुगलकालीन सेना के मुख्य सेनांग थे जिनके ऊपर उन्हें विजय प्राप्त करने का विश्वास था। विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- खानवा की लड़ाई (1527 ई०) का सचित्र वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- राजपूतों की असफलता के क्या कारण थे?
- प्रश्न- राजपूतों की युद्ध कला पर संक्षेप में लिखिये।
- प्रश्न- राजपूतों का सैन्य संगठन कैसा था?
- प्रश्न- राजपूतों के गुणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- राजपूतों में दुर्गणों का भी अभाव न था। इस कथन को साबित करिये।
- प्रश्न- तराइन के दूसरे युद्ध (1192 ई.) में राजपूतों की पराजय तथा मुसलमानों की विजय के क्या कारण थे?
- प्रश्न- 1527 ई० की खानवा की लड़ाई में राजपूतों और मुगलों की तुलनात्मक सैन्य शक्ति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 17वीं शताब्दी में मराठा शक्ति के उत्कर्ष के कारणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- मराठा सैन्य पद्धति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मराठा सेनाओं की युद्ध कला एवं संगठन का विवरण दीजिए।
- प्रश्न- पानीपत के तीसरे संग्राम (1761 ई०) का सचित्र वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मराठा शक्ति के उदय पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- शिवाजी के समय मराठों का सैन्य संगठन का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- मराठों की युद्धकला पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- मराठा सैनिकों के सैन्य गुणों को बताइये।
- प्रश्न- शिवाजी के सैन्य गुणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- पानीपत के तृतीय युद्ध ( 1761 ई०) में मराठों और अफगानों की सैन्य शक्ति का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- पानीपत के तृतीय युद्ध का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- पानीपत के तीसरे युद्ध (1761 ई.) में मराठों की पराजय के प्रमुख कारण लिखिए।
- प्रश्न- सिक्ख सैन्य पद्धति, युद्ध कला तथा संगठन का पूर्ण विवरण दीजिए।
- प्रश्न- रणजीत सिंह के पूर्व सिक्ख सैन्य पद्धति की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- "रणजीत सिंह भारत का गुस्तावस एडोल्फस माना जाता है। इस कथन के संदर्भ में रणजीत सिंह द्वारा सिक्ख सेना के किये गये विभिन्न सुधारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सोबरांव के संग्राम (1864 ई०) का वर्णन करते हुए सिक्ख सेना की पराजय के कारण बताइये।
- प्रश्न- दल खालसा पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सिक्ख सैन्य संगठन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- गुरु गोविन्द सिंह ने सिक्खों को सैनिक क्षेत्र में क्या योगदान दिये?
- प्रश्न- सिक्खों के सेनांग का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- रणजीत सिंह से पूर्व सिक्खों के समरतंत्र पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- खालसा युद्ध कला पर लिखिये।
- प्रश्न- महाराजा रणजीत सिंह के तोपखाने का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- रणजीत सिंह ने सेना में क्या-क्या सुधार किये?
- प्रश्न- सोबरांव के युद्ध (1846) में सिक्खों की मोर्चे बन्दी का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सोबरांव के युद्ध में सिक्खों की पराजय के क्या कारण थे?
- प्रश्न- सिक्ख दल खालसा का युद्ध के समय क्या महत्व था?
- प्रश्न- ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सैन्य पद्धति का वर्णन कीजिए तथा 1857 ई. के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के कारण बताइये।
- प्रश्न- सन् 1858 से लेकर सन् 1918 तक अंग्रेजों के अधीन भारतीय सेना के संगठन तथा विकास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- स्वतंत्रता पश्चात् सशस्त्र सेनाओं के भारतीयकरण का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सेना के भारतीयकरण में मोतीलाल नेहरु की रिपोर्ट का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- 1939-45 के मध्य भारतीय सशस्त्र सेनाओं के विस्तार और भारतीयकरण का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- भारतीय नभ शक्ति की विशेषताओं तथा कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय कवचयुक्त सेना पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- आधुनिक भारत में सैन्य संगठन की रचना एवं तत्वों का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय थल सेना के अंगों का विस्तृत विवरण दीजिए।
- प्रश्न- भारत के लिए एक शक्तिशाली नौसेना क्यों आवश्यक है? नौसेना के युद्ध कालीन कार्य बताइए।
- प्रश्न- भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के सैन्य संगठन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- लार्ड क्लाइव ने सेना में क्या-क्या सुधार किये?
- प्रश्न- लार्ड कार्नवालिस के सैन्य सुधारों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कमाण्डर-इन-चीफ लार्ड रॉलिन्सन ने क्या सुधार किये?
- प्रश्न- कम्पनी सेना की स्थापना के क्या कारण थे?
- प्रश्न- प्रेसीडेन्सी सेनाओं के विकास का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- क्राउनकालीन भारतीय सेना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- ब्रिटिशकालीन भारतीय सेना को किन कारणों से राष्ट्रीय सेना नहीं कहा जा सकता?
- प्रश्न- भारतीय मिसाइल कार्यक्रम पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
- प्रश्न- ब्रह्मोस क्या है?
- प्रश्न- भारत की नाभिकीय नीति का संक्षेप में विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- भारत ने व्यापक परीक्षण प्रतिबन्ध सन्धि (CTBT) पर हस्ताक्षर क्यों नहीं किया है?
- प्रश्न- पोखरन-II परीक्षणों में भारत ने किस प्रकार के अस्त्रों की क्षमता का परिचय दिया था?
- प्रश्न- भारत की प्रतिरक्षात्मक तैयारी का मूल्याँकन कीजिए।
- प्रश्न- भारत की स्थल सेना के कमाण्ड्स के नाम व उनके मुख्यालय लिखिए।
- प्रश्न- भारतीय वायु सेना के कार्यों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय वायु सेना के संगठन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतीय वायुसेना के कमाण्ड्स के नाम व उनके मुख्यालय लिखिए।
- प्रश्न- भारतीय वायुसेना पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- भारतीय स्थल सेना की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वायुसेना का महत्व समझाइये।
- प्रश्न- भारत की स्थल सेना के कमाण्ड्स के नाम व उनके मुख्यालय लिखिए।
- प्रश्न- प्रथम भारत-पाक युद्ध या कश्मीर युद्ध (1947-48) का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- स्वतन्त्रता के पश्चात् भारतीय सेनाओं द्वारा लड़े गये युद्धों का विवरण दीजिए।
- प्रश्न- 1948 के भारत-पाक युद्ध में स्थल सेना की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कश्मीर विवाद 1948 में सैन्य कार्यवाही के कारणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- 1948 का युद्ध भारत पर अचानक आक्रमण था। कैसे?
- प्रश्न- कश्मीर सैन्य कार्यवाही, 1948 के राजनैतिक परिणाम क्या थे? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- "भारतीय उपमहाद्वीप में शान्ति भारत-पाक सम्बन्धों पर अवलम्बित है।" इस कथन का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए
- प्रश्न- भारत-पाक युद्ध 1948 में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका।
- प्रश्न- 1962 में चीन के विरुद्ध भारत की सैनिक असफलताओं के कारण बताइए।
- प्रश्न- 1948 तथा 1962 के युद्धों में प्रयुक्त समरनीति का तुलनात्मक विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- भारत के सन्दर्भ में तिब्बत की सुरक्षा पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारत-चीन युद्ध 1962 में वायुसेना की भूमिका का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत-चीन संघर्ष, 1962 ने भारतीय सेना की कमजोरियों को उजागर किया। समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- नदी बाहुल्य क्षेत्र में वायुसेना की महत्ता समझाइये।
- प्रश्न- "भारत में रक्षा अनुसंधान एवं रेखास संगठन की भूमिका' पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- 1965 में भारत और पाकिस्तान के मध्य हुए युद्ध का विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 1965 के भारत-पाक संघर्ष के प्रमुख कारणों को आंकलित कीजिए।
- प्रश्न- 1965 के कच्छ के विवाद पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- ताशकन्द समझौता क्यों हुआ? स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- मरुस्थल के युद्ध की समस्याएँ लिखिए।
- प्रश्न- कच्छ के रन का रेखाचित्र बनाइये।
- प्रश्न- कच्छ के रण का महत्व समझाइये।
- प्रश्न- ताशकन्द समझौते के मुख्य प्रस्तावों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- कच्छ सैन्य अभियान पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारत-पाक युद्ध 1971 का वर्णन कीजिए तथा युद्ध के कारणों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 1971 के युद्ध में जैसोर तथा ढाका की घेराबन्दी अभियान तथा ढाका के आत्मसमर्पण का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत के लिए कारगिल क्यों महत्वपूर्ण है?
- प्रश्न- कारगिल युद्ध 1999 की उत्पत्ति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कारगिल युद्ध 1999 में भारतीय वायुसेना की आक्रामक कार्यवाही का मूल्याँकन कीजिए।
- प्रश्न- कारगिल संघर्ष 1999 के कारणों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- कारगिल युद्ध के पीछे पाकिस्तान की मंशा पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कारगिल युद्ध (1999) के समय भारतीय सेनाओं के समक्ष आई समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- कारगिल युद्ध 1999 में भारतीय वायुसेना की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
- 1 - वैदिक एवं महाकाव्यकालीन सैन्य व्यवस्था (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
- उत्तरमाला
- 2 - झेलम संग्राम - 326 ई. पू. (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
- उत्तरमाला
- 3- कौटिल्य का युद्ध दर्शन (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
- उत्तरमाला
- 4 - तुर्क एवं राजपूत सैन्य पद्धति : तराइन का युद्ध (1192 ईस्वी) (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
- उत्तरमाला
- 5- सैन्य संगठन एवं सल्तनत काल की सैन्य पद्धति (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
- उत्तरमाला
- 6 - मुगल सैन्य पद्धति : पानीपत का प्रथम संग्राम (1526 ईस्वी) (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
- उत्तरमाला
- 7- राजपूत सैन्य संगठन, शस्त्र प्रणाली एवं खानवा का संग्राम (1527 ईस्वी) (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
- उत्तरमाला
- 8- मराठा सैन्य पद्धति एवं पानीपत का तीसरा युद्ध (1761 ईस्वी) (वस्तुनिष्ठ प्रश्नऋ
- उत्तरमाला
- 9 - सिक्ख सैन्य प्रणाली एवं सोबरांव का युद्ध (1846 ईस्वी) (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
- उत्तरमाला
- 10 - ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सैन्य पद्धति, 1858-1947 ईस्वी तक (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
- उत्तरमाला
- 11- प्रथम भारत पाक युद्ध (1947-48) (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
- उत्तरमाला
- 12 - भारत-चीन युद्ध 1962 (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
- उत्तरमाला
- 13 - भारत-पाकिस्तान युद्ध - 1985 (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
- उत्तरमाला
- 14- बांग्लादेश की स्वतन्त्रता - 1971 (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
- उत्तरमाला
- 15 - कारगिल संघर्ष - 1999 (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
- उत्तरमाला